विषय ‘शांति के लिए जल’ है, विश्व जल दिवस 22 मार्च, जिसका अर्थ प्रेम या प्रियजन : हमारी नदियों के पुनर्जीवन की कहानी- गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
बैंगलोर/ इस वर्ष “विश्व जल दिवस” का विषय ‘शांति के लिए जल’ है। जल का जीवन से गहरा संबंध है। जल के लिए संस्कृत शब्द आपः है, जिसका अर्थ प्रेम या प्रियजन भी है। सभी प्रमुख प्राचीन सभ्यताएँ नदियों के तटों पर पनपी हैं; भारत में गंगा और यमुना, मिस्र में नील नदी व दक्षिण अमेरिका में अमेज़न नदी।
नदियों के साथ भारत का सांस्कृतिक संबंध बहुत गहरा है। भगवान राम ने अपना जीवन सरयू नदी के किनारे बिताया था। गंगा को भगवान शिव की जटाओं से निकलते हुई दर्शाया गया है और योगी सहस्राब्दियों से इसके तटों पर ध्यान करते रहे हैं। गंगा ज्ञान का प्रतीक है और यमुना भक्ति का प्रतीक है। भगवान कृष्ण के प्रति गोपियों का प्रेम और भक्ति, यमुना के तट पर विकसित हुई।
हमें अपनी नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए हर संभव प्रयास करने की आवश्यकता है। इसमें आस्था मुख्य भूमिका निभा सकती है। आस्था लोगों को समुचित ढंग से कार्य करने और पर्यावरण, नदियों, पहाड़ों, जंगलों और पानी के अन्य स्रोतों की देखभाल करने के लिए प्रेरित कर सकती है। हमारे पास सर्वोत्तम नीतियां हो सकती हैं लेकिन उन नीतियों को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए लोगों को अधिक जागरूक होने की आवश्यकता है और यहां आस्था पर आधारित संगठन एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
भारत में जल की प्रचुरता : जमीनी स्तर पर कार्य
विश्व में शांति और स्थिरता के लिए पानी की उपलब्धता बहुत महत्वपूर्ण है। हमने भारत में इसी दिशा में काम किया है। जमीनी स्तर पर लोगों को साथ लेकर, हमने 70 से अधिक नदियों को पुनर्जीवित किया, जो केवल राजस्व रिकॉर्ड पर मौजूद थीं। यहाँ सूखी नदियों के तलों का दोहन और अतिक्रमण किया जा रहा था; बाढ़ या महीनों तक सूखे के कारण या तो अतिरिक्त पानी बर्बाद हो गया, फसलें नहीं उगीं और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। हर दिन आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या बढ़ती गई।
बाहरी परिवर्तन लाने से बहुत पहले, परिवर्तन स्वयं के भीतर लाना होगा। जब आपका हृदय संवेदनशील हो जाता है, तो आप सेवा किये बिना नहीं रह सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में हमारे स्वयंसेवकों का समूह इसी तरह बढ़ा है। अपने भीतर अनुभव की गई संतुष्टि से प्रेरित होकर, उन्होंने दूसरों की सेवा करने और दूसरों को भी वही खुशी देने का निर्णय किया। हमारे स्वयंसेवक जमीनी स्तर पर गांवों में गए। उन्होंने लोगों को प्रेरित किया और भीतरी खुशी पाने और सबल बनने के लिए ध्यान, श्वास, योग और अन्य अभ्यास सिखाए। उन्होंने सैकड़ों भूमि पुनर्भरण कुएं बनाने के लिए उनके साथ काम किया, ताकि बारिश का पानी उनमें रिसना शुरू हो सके। हमने पुनर्वनीकरण की पहल की, बबूल जैसी जल-गहन प्रजातियों को हटाया और नदी के किनारे आम, पीपल जैसे स्वदेशी पेड़ लगाए।
यह एक चमत्कार घटने जैसा था कि भूमि सर्वेक्षण करने, पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण करने और पौधों की लाखों सही प्रजातियों को दोबारा लगाने के बाद, हमने हजारों जल निकायों को पनपते देखा, तालाबों का पुनरुद्धार किया गया और आज 5 भारतीय राज्यों में 70 सूखी नदियाँ पानी के साथ बारह महीने बह रही हैं। पक्षी वापस आने लगे हैं, और बादल भी वापस आने लगे हैं।
पिछले मई में विदर्भ क्षेत्र से, जहां किसान सबसे अधिक आत्महत्याएं कर रहे थे, लगभग एक हजार किसान हमारे स्वयंसेवकों द्वारा किए गए कार्यों द्वारा लाए गए परिवर्तन के लिए धन्यवाद देने हमारे बैंगलोर आश्रम में आए। वे अब पहले से चार गुणा अधिक कमा रहे थे। दो साल से भी कम समय में 19,500 से अधिक गांवों को लाभ हुआ।
जब कोई व्यक्ति सहज और तनाव से मुक्त होता है, तो वह संवेदनशील हो जाता है, वह सेवा करने में उत्सुक, साझा करने वाला और समाज के प्रति प्रतिबद्ध हो जाता है। यहां आस्था पर आधारित संगठन लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने, उन्हें प्रोत्साहित करने और सेवा करने के लिए प्रेरित करने, हमारी नदियों को पुनर्जीवित करने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं, जिससे चारों ओर समृद्धि, स्थिरता और शांति आएगी।