बुरहानपुर म.प्र. में भागवताचार्य पं. मुकेश शर्मा नारायणजी मंदसौर वाले ने कहा भगवान की भक्ति के लिए इंसान अपनी उम्र के पड़ाव का इंतजार न करें भगवान की भक्ति तो हर उम्र में प्राप्त की जा सकती
बुरहानपुर। मध्यप्रदेश, मंदसौर, ग्राम परेठा जिला बुरहानपुर म.प्र. में समस्त भक्तों के द्वारा श्रीमद भागवत कथा का दिव्य आयोजन किया जा रहा है। श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिवस में श्री हनुमन्त भागवत कर्मकाण्ड परिषद के संस्थापक भागवताचार्य पं. मुकेश शर्मा नारायणजी मंदसौर वाले ने कहा कि मनुष्य अपने जीवन में भगवान की भक्ति के लिए अपनी उम्र के आखरी पड़ाव का इंतजार न करें। आखरी वक्त में की गई भक्ति तो भगवान भी उसी रूप में स्वीकार करेंगे जिस प्रकार आप अपनी वृद्धावस्था में आकर भगवान को याद करोगे।
भगवान की भक्ति तो मनुष्य को अपने बाल स्वरूप से ही प्रारम्भ करना चाहिए। जो व्यक्ति अपने बाल स्वरूप से ही भगवान की भक्ति को प्राप्त करता है उस भक्त की पुकार तो स्वयं भगवान भी सुनते हैं। आज के इस तेजी से भागते हुए जमाने में युवा पीढ़ी की सोच होती है कि भगवान की भक्ति करना तो वृद्धजनों का काम है यह विपरीत सोच ही आपको भक्ति के मार्ग से हटाकर कर्महीन मार्ग पर धकेलती है। यदि इंसान अपने बाल स्वरूप से ही भगवान की भक्ति को अपने जीवन में निरन्तर रखता है। वह कभी भी अपने जीवन में मार्ग से भटकता नहीं है और पूरे जीवन अपने भगवान की भक्ति को स्मरण रखता है। उन्हीं व्यक्तियों को वृद्धावस्था में सिर्फ और सिर्फ भगवान का परम आशीर्वाद प्राप्त होता है भगवान की भक्ति करने की कोई उम्र निर्धारित नहीं। हर उम्र में की जा सकती है भगवान की सुंदर भक्ति। जिस प्रकार 5 वर्ष के छोटे से भक्त धु्रव ने अपने माता पिता के राजमहल सुख को त्याग कर भगवान को प्राप्त करने की मन में लालसा बनाते हुए घने वन में जाकर निरन्तर भगवान का जाप करते रहे उनको स्वयं भगवान न दर्शन देते हुए अपने सबसे प्रिय भक्त की उपाधि दी गई।
इस कारण कहा जाता है कि भगवान की भक्ति करने की कोई उम्र निर्धारित नहीं। भगवान की भक्ति के लिए अपनी 50 वर्ष की उम्र का इंतजार न करो। यदि इंसान अपनी उम्र के एक पड़ाव का इंतजार करेगा तो वह अपने पूरे जीवन में इतने कर्म में व्यस्त हो जाएगा कि उसका मन आखरी पड़ाव में भी भगवान की भक्ति में लगना असंभव होगा।
भगवान की भक्ति को यदि हर इंसान अपने बच्चों के मन में उतारने का पूर्ण प्रयास करेगा तो बच्चों का आने वाला जीवन भी पूर्ण रूप से संस्कारवान बनेगा। अपने बच्चों को अधिक से अधिक धर्म कथाओं का श्रवण अवश्य करावें। क्योंकि भागवत कथा के श्रवण से ही इंसान के जीवन में संस्कारों का निर्माण होता है और जिस बाल स्वरूप बच्चें के जीवन के प्रथम पड़ाव में ही श्रीमद भागवत कथा प्रवेश करेगी उसका जीवन निश्चित ही भगवान की भक्ति में समर्पित होते हुए वह सदैव धर्म के मार्ग पर चलते हुए दान, दया, के कर्म को निभाऐगा, उसका जीवन स्वयं ही अन्त समय स्वर्ग की प्राप्ती करेगा।